मेरा नाम गिरीश है, मैं अभी 19 साल का हूं और नई-नई जवानी में कदम रखा है। मैं बिहार के दरभंगा जिले से हूं और इस साइट पर काफी समय से एक्टिव हूं। मुझे इस साइट की कहानियां बहुत ही उत्तेजित कर देती हैं और मैं मुट्ठ मारे बिना रह नहीं पाता हूं। इसलिए सोचा कि आज अपनी अंतर्वासना को जग-जाहिर कर देता हूं। मेरा लंड मुझे हमेशा लड़कियों के दूधों की तरफ ताड़ने के लिए उकसाता रहता है। और रात को हमेशा उनकी बुर के ख्याल दिमाग में उमड़-घुमड़ करते रहते हैं। शायद किसी ने सच ही कहा है कि ये जवानी की उम्र भी आग का दरिया ही होती है। हर वक्त सेक्स की आग में तन-बदन जलता रहता है। लंड का बस एक ही ख्याल ..कि बुर को चोद-चोद कर दूं बुरा हाल।
अपनी इसी जवानी के जोश में एक दिन मैंने सारी हदें पार कर दी। मेरा घर शहर से दूर गांव में है और गांव में लड़कियां अक्सर घर के काम-काज में ही लगी रहती हैं इसलिए बाहर जगह-जगह घूम कर लड़कियां ढूंढनी पड़ती हैं ताकि रात में मुट्ठ मारने का जुगाड़ हो सके। इसलिए मैं अक्सर बाहर मटरगश्ती में निकला रहता हूं। कभी गांव के छोटे से बाज़ार में तो कभी खेत-खलिहानों में। ताकि कोई तितली तो कहीं दिख जाए जिसके बारे में सोचकर मेरे जवान हो चुके लौड़े को थोड़ा अकड़ने का मौका मिले। मेरे हाथ को उसकी मालिश करने का मौका मिले।
ऐसे ही एक दिन मैं अपने लौड़े के मनोरंजन की खातिर खेत में गया हुआ था ताकि कोई कमसिन जवानी दिख जाए और उस पर अपनी हवस की लार की कुछ बूंदें मासूमियत में लपेट कर मकड़ी वाला जाल बनाऊं और उसकी बुर मेरे झाटों के तले आकर फंस जाए। मैं खेतों की तरफ निकला हुआ था और मैंने देखा कि एक खेत में धान की कटाई चल रही थी जहां पर कुछ औरतें कटाई में लगी हुई थी। मैं जान-बूझकर उनके पास से कुछ गाना सा गुनगुनाता हुआ भंवरे की तरह निकला और उनमें से एक औरत ने मेरी तरफ पीछे मुड़कर देखा।
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मैंने भी उसे देखा। उसने वापस मुंह घुमा लिया और कटाई में लग गई। मैं थोड़ा आगे निकल गया। क्योंकि वहां पर बहुत सारे लोग कटाई में लगे हुए थे। अगर मैं वहीं पर खड़ा रहता तो हो सकता था कटाई के साथ-साथ मेरी पिटाई भी वहीं हो जाती। इसलिए मैंने रिस्क लेना ठीक नहीं समझा। लेकिन लस्टी लौड़ा कहां मानने वाला था।जवान चूत मुड़कर देखे और ये अपने पर कंट्रोल कर ले। ना, बाबा ना..।इसने साफ मना कर दिया। और आकार बढ़ाकर अंडरवियर में तन गया और आगे जाने से मना करते हुए अकड़ गया। बोला- एक बार और देख ले ना….। क्या पता बात बन जाए।
मैंने कहा- ठीक है भाई, तू तो मानने वाला है नहीं और मैं तेरी बात को टाल नहीं सकता।
मैंने वापस खेत की तरफ कदम बढाते हुए उल्टी चाल चलना शुरु किया। अबकी बार मैं सीटी बजाता हुआ निकला। उसी औरत ने फिर मुड़कर देखा। मेरे मन में लड़्डू फूटे। हाय! गिरिश आज तो लौड़े की मालिश का इंतज़ाम हो गया। रात को बिस्तर में इसको ख्यालों में नंगी करके सारी रात न चौदा तो मैं भी अपने लंड का गुलाम नहीं। ये सब सोचते हुए मैं आगे बढ़ ही रहा था। इतने में वो औरत उठी और पास में रखी पानी की मटकी से उठकर पानी पीने लगी। वो पानी पीते हुए बीच-बीच में मुझे भी देख रही थी। वो हाथ का ओख बना कर पानी पी रही थी और पानी उसकी ठुड्डी से गिरता हुआ उसकी साड़ी के पल्लू को भिगोकर उसकी छाती पर गिर रहा था।
जब उसने पानी पी लिया तो देखा कि उसका पल्लू उसकी छाती के पास से भीग गया है। उसने पल्लू हटाया और नीचे की तरफ देखा तो ब्लाउज भी पानी में गीला हो गया था। उसने पल्लू बिल्कुल हटा दिया। और गीले ब्लाउज को ऐसे झड़काने लगी जैसे उसका पानी सुखा रही हो। उसके मोटे चूचे जो महरून रंग के ब्लाउज में फंसे हुए थे उसके हर एक झटके के साथ हिल रहे थे। वो अपने हाथ से अपने ब्लाउज को ऐसे साफ कर रही थी जैसे ये पानी अभी झड़कर नीचे गिर जाएगा। मैं खड़ा-खड़ा दीवाना सा होकर ये सब चोर नज़रों से देख रहा था।
वो बीच-बीच में मुझे भी देखे जा रही थी। जैसे ही वो मेरी तरफ देखती मैं अपनी नज़रें यहां-वहां घुमाने लगता। लेकिन लंड को कहां छिपाता। ये तो मेरी पैंट में सांप की तरह दबा हुआ यहां-वहां हिलने की नाकाम कोशिश करता हुआ अपने पूरे जोश में आ चुका था। इतने में दूसरी औरत भी उठकर उसकी तरफ बढ़ी।
मर गए! मैं तो पलटी मारकर वहां से चलता बना। कहीं पकड़ा गया तो आफत हो जाएगी। मैंने जल्दी से अपना रास्ता नापना शुरु कर दिया और गांव की गली में आकर ही चाल धीमी की। लेकिन लौड़े ने जो नज़ारा अभी देखा था उसके लिए एक बार मुट्ठ तो बनता ही था। उसके लिए मैं रात का इंतज़ार नहीं कर सकता था। मैं फटाफट गांव के पास बने खंडहरों में गया और सटाक से दीवार के सहारे लगकर आंखें बंद कर लीं।
आंखें बंद करते ही महरून भीगे ब्लाउज में उस औरत के मोटे चूचे मेरे ख्यालों में आकर आंखों के सामने ऊभर आए। मैंने झट से पैंट की चेन खोली और लौड़े को एक बार अंडरवियर के ऊपर से ही सहलाया और इसने खड़ा होने में एक मिनट का कुछ ही हिस्सा लिया। मैंने उस औरत के चूचों के बारे में सोचते हुए लौड़े को अंडरवियर से बाहर निकाला और लंड को हिलाने लगा। हाय, उसके मोटे चूचे, हाय! उसका भीगा ब्लाउज, हाय! उनको दबा दूं। चूस लूं …“आआआअह्हह्हह……..ईईईईईईई…….ओह्ह्ह्…….आहहहहहह……म्म्म्म्म्म्….” करता हुआ मैं वहीं पर मुट्ठ मारने लगा। और 2 मिनट में ही लंड ने थूकना शुरु कर दिया।
मैं दीवार के सहारे लगकर ऐसे ही खड़ा रहा और कुछ पल के बाद शांत हुआ। और वहां से निकल गया। घर जाकर थोड़ा टाइम पास किया। लेकिन 2 घंटे के अंदर ही लौड़े ने फिर परेशान करना शुरु कर दिया।
बोला- एक बार और चल ना खेत की तरफ।
मैंने बहुत समझाया लेकिन कमबख्त नहीं माना। शाम होने वाली थी। मैं घर से दोबारा निकल पड़ा। मैं सीधा खेतों की तरफ चला जा रहा था। काश..वो मोटे चूचों वाली वहीं मिल जाए। काश…उसकी चूत के दर्शन हो जाएं। काश…वो पट जाए और मुझसे अपनी चूत चुदवाए। वासना की मीठी मनभावन तरंगे मेरे कदमों की रफ्तार को सहारा दे रही थीं। कुछ ही देर में मैं खेत के पास पहुंचने ही वाला था।
लेकिन ये क्या, ये लोग तो गांव की तरफ चले आ रहे हैं। मेरे अरमानों पर पानी फिर गया। अब क्या…बुर तो हाथ से निकल गई। मैंने सोचा, कोई बात नहीं, अभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। मैं आगे चलता रहा। वो सब कच्ची पगडंडी पर चलते हुए गांव की तरफ आ रहे थे और मैं खेतों की तरफ जा रहा था। 5-6 औरतें थीं, मैं अपने वाली को ढूंढ रहा था। थोड़ा ध्यान दिया तो पता चला कि वो लाइन में सबसे पीछे वाली है।
मैंने चोर नज़रों से यहां-वहां देखने के बहाने बीच-बीच में उसकी तरफ देखना जारी रखा। थोड़ा पास आया तो पता चला वो भी मुझे देख रही थी। अब मेरी हिम्मत थोड़ी बढ़ गई और मैंने उसको घूरना शुरु कर दिया। वो भी मेरी तरफ देखकर हल्के से मुस्कुरा रही थी। मैंने उसके चूचों की तरफ भी देखा । वो साड़ी के पल्लू के नीचे दबे हुए ऊपर नीचे हिल रहे थे। वो मेरे और पास आती जा रही थी। बाकी औरतों ने घूंघट डाला हुआ था लेकिन उसने खोला हुआ था।
धीरे-धीरे वो मेरे करीब से गुज़री…मैंने उसको देखा और उसने मुझे। वो मेरी नज़रों में नज़र मिलाकर देख रही थी। जैसे कह रही हो- मैं तो तैयार हूं। मेरे मन में लड्डू फूट रहे थे। चूत का इंतज़ाम हो गया लगता है। वाह रे गिरीश, क्या किस्मत पाई है तूने। इतने मोटे चूचों वाली चिड़िया हाथ लगी है। मैंने उसकी तरफ देखते हुए आंख मार दी और वो भी मुस्कुरा दी। बस, अब तो मुझे यकीन हो गया कि ये वाली तो चुदकर ही रहेगी। मैं आगे बढ़ गया। मन ही मन अपनी कामयाबी पर इतरा रहा था। आगे चला तो देखा सामने से मेरे दो दोस्त भी आ रहे थे। मेरे मुस्कुराते हुए चेहरे को देखकर बोले- क्या बात है गिरीश, काफी खुश लग रहा है।
मैंने एक बार तो सोचा, कि इतने दिनों बाद मुर्गी फंसी है, अकेले ही चट कर जाता हूं, लेकिन फिर अपनी किस्मत का गुणगान करते हुए बता ही दिया कि अभी अभी एक मोटे चूचों वाली से नैन-मटक्का करके आ रहा हूं। पूरी माल है। चुदने के लिए तैयार है बस। वो भी मुझे शाबाशी देने लगे। बोले, वाह यार, तू तो बड़ा खिलाड़ी है। हमें भी दिला दे ना। 6 महीने से चूत के दर्शन ही नहीं हुए हैं।
मैंने कहा- पहले मैं तो मत्था टेक लूं, फिर तुम भी दर्शन कर लेना।
हम सारे दोस्त हंसने लगे और गांव की तरफ वापस बढ़ने लगे। अंधेरा घिरता हुआ आ रहा था। हम गांव की सीमा से थोड़ी ही दूर थे। हमने देखा कि दो औरतें वापस खेतों की तरफ चली आ रही हैं।
सोचा कि शाम का समय है शायद शौच वगैरह करने जा रही होंगी। क्योंकि गांव में अक्सर महिलाएं खेतों या खुले में रात के अंधेरे में ही जाती हैं। जैसे ही हम पास पहुंचे मैंने देखा कि ये तो वही औरत है जो कुछ देर पहले धान की कटाई के खेत से गई थी। लेकिन उसके साथ ये दूसरी औरत कौन है…?
मैंने अपने दोस्तों के कान में चुपके से फुसफुसाया -अबे..ये तो वही है। मोटे चूचों वाली। मेरे दोनों दोस्त भी उनको घूरने लगे।
वो दोनों हमारे पास से गुजरीं लेकिन उन्होंने हमारी तरफ देखा नहीं। क्योंकि हम तीन लोग थे। इसलिए वो हमें नज़अंदाज़ करके निकल गईं। मैंने पीछे मुड़कर देखा तो मेरे वाली मुझे मुड़कर देख रही थी और हल्के से मुस्कुरा रही थी। मेरे दिल पर छुरी चल गई। मैंने अपने दोस्तों से कहा- यार ..ये तो पूरी लाइन दे रही है। वो बोले- चल, हम भी चलें क्या इनके पीछे..?
वैसे भी अब कौन आने वाला है खेतों में…अगर बात बन गई तो मज़ा आ जाएगा।
मैंने कहा- देख लो सालों…कभी मरवा दो।
वो बोले- डरता क्यों है, हम हैं ना तेरे साथ, कुछ नहीं होगा।
मैंने कहा- ठीक है, हम भी उनके पीछे-पीछे चल पड़े। जल्दी ही वो खेत आ गया जहां पर वो कटाई कर रही थीं। हमें देखते हुए वो खेत के अंदर घुस गईं। हम भी उनके थोड़ा ही पीछे पगडंडी पर चले आ रहे थे। खेत के अंदर जाकर वो हमारी तरफ मुंह करके खड़ी हो गईं। उन्होनें हमें देखते हुए अपनी साड़ी उठाई उसको जांघों तक लाकर नीचे बैठ गईं। ये सब करते हुए वो दोनों ज़रा भी नहीं शरमा रही थीं। हम तीनों की हवस ने भी उनकी चूत की गर्मी को महसूस कर लिया और खेत में उतर गए। वो ऐसे ही बैठी हुई थीं। पास जाते ही वो दोनों पीठ के बल नीचे लेट गईं और साड़ी को उठा लिया। हमने भी कुछ न सोचा और मैं अपने वाली के पास जाकर बैठ गया और मेरे दोनों दोस्त दूसरी औरत के पास जाकर बैठ गए। मैंने पूछा- क्या नाम है छमिया। वो बोली- रनिया और ये है मेरी सहेली झुम्पा।
मैंने कहा- तो क्या इरादा है। वो बोली- इरादा तो तोहार दिन में ही देखत रही मैं। तभी तो इही बखत आई हूं।
मैंने कहा- ई बात है का।
कहते हुए मैंने उसकी जांघों पर हाथ फेरना शुरु कर दिया। मेरी शुरुआत देखकर मेरे दोस्तों ने झुम्पा के साथ भी ऐसी हरकतें करनी शुरु कर दीं। हम तीनों जवान लौंडे थे, इसलिए ज्यादा देर अपने आप पर काबू नहीं रख पाए। मैंने तो फटाक से उसकी चूत पर अपना हाथ रगड़ना शुरु कर दिया। मैंने झुम्पा की तरफ देखा तो मेरे दोस्तों ने उसको नंगी ही कर लिया था। और अपने कपड़े उतारने में लगे हुए थे। मैंने रनिया के मोटे चूचों को दबाते हुए उसके होठों को चूसना शुरु किया और एक हाथ से उसकी चूत को मसलना जारी रखा। मैंने अगले ही पल अपनी पैंट की चेन खोली और अपना खड़ा लौड़ा रनिया कि बुर पर रगड़ते हुए उसके ब्लाउज को उतरवा दिया।
रनिया के मोटे सांवले चूचे मेरे हाथों में थे और लंड उसकी चूत में जाने के लिये मचल रहा था। मैं ज्यादा देर खुद को रोक नहीं पाता था। इसलिए मैंने सोचा, इससे पहले कि मेरा लंड मेरे अरमानों पर थूके मुझे इसको गुफा में डाल देना चाहिए। मैंने तुरंत रनिया की चूत में लंड को उतार दिया और उसके चूचों में मुंह डालकर उसको चोदने लगा। उसके मुंह से कामुक सिसकियां निकलना शुरु हो गईं। “उई…..उई….उई……माँ…..ओह्ह्ह्ह माँ…….अहह्ह्ह्हह…….” करती हुई वो मेरे लंड से चुद रही थी। मैंने दूसरी तरफ देखा तो मेरे एक दोस्त ने झुम्पा की चूत में लंड डाल रखा था तो दूसरे ने उसके मुंह में।
वो दोनों भी कामुक सिसकियां लेते हुए उसके नंगे बदन से खेल रहे थे। आह…कितना मज़ा आ रहा था यार! एक चूत में मेरा लंड गया हुआ था और साथ ही दूसरी चूत को मैं चुदते हुए देख रहा था। इस वक्त कामदेव की कृपा दिल खोलकर बरस रही थी हम पाचों पर। मैंने रनिया की चूत में लंड के धक्के तेज़ कर दिए और उसकी सिसकी दर्द के साथ-साथ आनंद का आभास भी करवाने लगी…“ओह्ह माँ……ओह्ह माँ….उ उ उ उ उ…..अअअअअ……. आआआआ……” करती हुई अपनी चूत चुदवा रही थी। मैं आनंद में मस्त था। मेरे साथ ही मेरे दोनों दोस्त झुम्पा की चीखें निकलवा रहे थे। माहौल इतना कामुक हो गया कि मैंने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण खो दिया और रनिया की चूत में वीर्य की धार निकल पड़ी।
मैं तो कुछ ही देर में शांत हो गया लेकिन मेरे दोनों दोस्त अभी झुम्पा को मसलने में लगे हुए थे। मेरे उठते ही एक दोस्त ने झुम्पा के चूचों पर लंड लाकर मुट्ठ मारना शुरु कर दी और दूसरे ने चूत में धक्कों की स्पीड बढ़ा दी। मिनट भर के अंदर ही वो दोनों भी झड़कर उठ गए। हम सबने अपने कपड़े ठीक किए और फटाफट खेत से निकल गए। उसके बाद तो उन दोनों कई बार हमारे प्यासे जवान लौड़ों को अपनी चूत का पानी पिलाया।