हैलो दोस्तो, अन्तर्वासना पर यह मेरी पहली कहानी है मेरे अंदर भरी हवस की … यह मेरी सच्ची कहानी है. मेरे नाम के जैसा मेरा रूप नहीं था.. जिस कारण लड़के मुझे पसंद करना तो दूर, मेरी तरफ देखते भी नहीं थे. मेरे मोटे मोटे होंठ नीग्रो जैसे, काला रंग, खुरदुरा चेहरा… लोग मेरे मुँह को सुअर सुअर बोल कर मुझे चिढ़ाते थे. ये शब्द सुन कर सब मुझे बिल्कुल भी ठीक नहीं लगता था. मेरी उम्र 29 साल की हो गई थी. पर अब भी मैं बिल्कुल कुंवारी थी क्योंकि मैं बदसूरत थी. मेरा भी मन करता था कि कोई मेरे बड़े बड़े मम्मों को दबाए, मेरे होंठों को चूमे, मुझे घोड़ी बना कर या कुतिया बना कर पटक पटक कर जी भर के चोदे.
मेरी जवानी अपनी पूरी चरम सीमा पर थी और चूत पानी छोड़ने को आतुर थी.
मैंने स्कूल कॉलेज की लाइफ में केले, खीरा और ककड़ी से चुत की खाज मिटाने का का पूरा मजा लिया. पर अब इन सबसे मेरा मन भर गया था. अब तो इनसे मुझे मजा ही नहीं आता था.
सीधी बात कहूँ.. तो अब मुझे भी लंड चाहिए था. छोटा, बड़ा, काला सफ़ेद, बाल वाला, बिना बाल वाला लंड, कैसा भी हो.. बस मेरे को तो अब अपनी चूत की प्यास बुझानी थी. चाहे जो हो जाए.. मुझे लंड पेलवाना था बस.. और अपनी चूत में लंड की गर्मी महसूस करना था.
इसी तरह बेबसी में दिन गुजरते गए और खुद के हाथों से अपने मम्मों को मींज मींज कर अफलातून साइज़ के कर लिए थे. मैंने मुँह बाँध कर निकलना शुरू कर दिया था और इस तरह से निकलते वक्त मैं गहरे गले का टॉप पहनती थी ताकि मेरे मम्मों की घाटी लोगों का लंड खड़ा कर दे. पर मेरी चुत के नसीब में कोई लंड न आ सका.
यूं ही दिन गुजरते गए. फिर कॉलेज के बाद एक बढ़िया सी कंपनी में मुझे नौकरी मिल गई. बस मैं तो नौकरी ज्वाइन करते ही एक बार फिर नए उत्साह से लंड की तलाश में भिड़ गई. पर लौंडे लोग सुन्दर लड़कियों के पीछे अपना लंड हिलाते थे. मेरी तो जैसे दुनिया ही लुट गई थी.
तभी मेरी मुलाकात बघेल नाम के एक हट्टे कट्टे और मोटे लंडधारी से हुई. उसकी हाइट भी मेरे जितनी ही थी. उसको देख कर ऐसा लगा जैसे हम दोनों एक दूसरे को चोदने के लिए ही बने हैं.
माँ कसम मैं तो उसके जींस के ऊपर से उसका पूरा लंड देख पा रही थी. वो पूरा शराबी था, भैन का लौड़ा बहुत दारू पीता था. उसको रंग रूप से कोई मतलब नहीं था.. बस उसको भी मेरी चूत का स्वाद चाहिए था.
उसने भी मुझे अपने लंड को घूरते हुए देख लिया. फिर एक दिन मौका देख कर मुझे लिफ्ट में संयोग से वो मिल गया. उसने मौका देखा तो वो मुझे अपना जींस पेंट की चैन खोल के अपनी नुन्नू दिखाने लगा और ऐसा करने लगा कि जैसे उसको पता ही नहीं हो कि वो अंडरवियर नहीं पहने हुए है और उसकी जींस की चैन खुल गई है.
मैं भी उसके लंड को जी भर कर घूरने लगी और अपनी हथेली को अपनी पजामी में घुसा कर चूत मसलने लगी.
‘अहां यइह.. यू फ़फ़फ़फ़.. शी श..’
अब तो मेरे से भी बर्दाश्त नहीं हो रहा रहा तो अब मैंने ना आव देखा न ताव, बस अपना हाथ उसकी जींस की चैन से अन्दर घुसा कर उसके लंड को सहलाने लगी और जोर जोर से लंड हिलाने लगी.
दूर से तो वो मुझे कई बार देख चुका था, आज पहली बार मैं उसके इतनी पास थी. मुझे डर था कि कहीं ये भी पास से मेरा भद्दा चेहरा देख कर मुझसे दूर न चल दे. इसलिए मैंने तनिक भी देर नहीं की.
बस फिर क्या था.. वो मुझे बील्डिंग की छत पर ले गया और उसने मुझे नीचे बैठने का इशारा किया और जींस का बटन खोल दिया. मैं उसके लंड को जी भर के अपने मुँह में ले कर जोर जोर से चूसने लगी.
लंड चुसाई से वो भी गरमा गया था.
उसने मुझे उठा कर मेरे मम्मों को जी भर कर जोर जोर से मसलना चालू कर दिया.
‘उईईई माँआ हम्म.. इशह्ह्ह..’
मुझे अभी भी डर था कि कहीं ये मेरा चेहरा देख अपना मूड न बदल दे तो मैंने अपना चेहरा घुमा कर अपनी गांड उसके लिए खोल दी.
बस फिर क्या था वो कभी मेरे मम्मों को दबाता तो कभी मेरे गांड की छेद में उंगली करता.
मैं तो जैसे सिहर सी गई.
“उफ्फफ्फ्फ़ इष्ठ्हहह.. उफ़.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… चूसो और चुसो.. आह.. दबाओ.. आह छेद में डालो.. मेरी गांड के छेद को अपनी उंगली से खोल दो.. आह..” बस मैं ऐसे ही चिल्लाती रही और उसने अपने लंड को मेरी गांड की छेद में घुसा दिया. लंड क्या घुसा, मैं तो चिल्ला उठी.
“चोद दे चोद दे.. मेरी हवस मिटा दे … आह.. फट गई.. आह ये गांड सिर्फ तेरी है.. उफ़.. फाड़ दे तू.. आज मेरी गांड को.. चीर दे आज तू इसको.. ओह.. उफ्फ्फ्फ.. बघेल.. चोद.. आज फाड़ दे ये..”
उसने लिफ्ट रोक दी और वो भी पूरा जोर लगा लगा कर मुझे जी भर कर आधा घंटा पेलता रहा.
इस वक्त वो मुझको घोड़ी बना कर मेरी चूतड़ में अपना लंड डाल दिया था और उस समय हमने छत पे ही तीन बार चुदाई का लुत्फ़ उठा लिया.
बस फिर क्या था.. अब हम हमेशा एक दूसरे से सेक्स करने के बहाने ढूंढ़ने लगे.
अब हम सिर्फ लिफ्ट, ऑफिस और लेडीज टॉयलेट में ही नहीं.. बल्कि अब वो अब मेरे घर भी आकर मेरा चेहरा ढक कर मुझको चोदने लगा.
हाय रब्बा वाह रे चुदाई.. मुझे मजा आ गया.
उस दिन छत पर जब वो कुतिया बना कर मुझे पेल रहा था, तो उसने अपना सारा माल मेरे अन्दर ही डाल दिया था. आज तक उसकी मलाई का अहसास जेहन में आ जाता है.. कितना गरम गरम माल था. वो मुझे चोद कर जन्नत के सुख का अहसास करा गया था.
आज भले मेरी शादी नहीं हो रही क्योंकि मैं बदसूरत हूँ, पर अब जब भी सेक्स करने का मन होता है तो मैं बघेल को ही याद करती हूँ, और वो जब भी नशे में न हो, तो वो सेक्स के लिए मना कर देते हैं. उस वक्त मैं उसको दारू पिला कर पहले नशीला बनाती हूँ, फिर वो मुझे अपने नशीले लंड से मुझमें चुदाई का नशा भर देता है. हर बार वो झड़ने के बाद मुझे परमानन्द मिलता है लेकिन हर दो दिन बाद मेरी हवस वासना जागने लगती है, चूत कुलबुलाने लगती है.
अब उसका ट्राँसफर दूसरे शहर में हो गया तो मैं अब फिर से नए लंड की तलाश में हूँ. जब मुझे कोई नहीं मिलता है तो भिखारी लोगों को एक वक़्त का खाना खिला कर और कुछ पैसे देकर उनसे भी चुदवा लेती हूँ, क्योंकि अब मैं इसी तरह से जीना सीख गई हूँ.
आपको फिर कभी लिखूंगी कि मैं कैसे एक भिखारी से चुदी.. और उस भिखारी को मेरी चुदाई से कितना मजा आया. ये सब आपको आपके मेल मिलने के बाद में लिखती हूँ.
आपकी अपनी सेक्सी हब्शी की हवस निराली.